Diwali 2024 : घूमते रहें कुम्हारों की उम्मीदों के चाक, दिवाली पर दीयों से घर करेंगे रोशन, लाएंगे खुशहाली....
दीपावली नजदीक आ चुकी है। ऐसे मेें दूसरों के घरों को रोशन करने के साथ ही अपने घर भी खुशियां लाने की उम्मीद में सब कुम्हारों का चाक घूमना शुरू हो गया है। बीकानेर के बड़ा बाजार, जस्सूसर गेट, कोटगेट व जूनागढ़ रोड पर दीयों के बाजार भी सज चुके हैं। पिछले कुछ वर्षो से आमजन में आई जागरूकता के चलते चाइनीज सामान का बहिष्कार भी होने लगा है. ऐसे में मिट्टी के दीपों की मांग भी पिछले सालों से अधिक बढ़ी है।
मिट्टी के दीयों की अपनी परंपरा है
दीपावली 1 नवम्बर को मनाई जाएगी। दीप पर्व पर मिट्टी के दीयों से घर को रोशन करने की परंपरा सदियों पुरानी है। इसका अपना महत्व भी है। ऐसे में दीपावली के नजदीक आते ही कुम्हार दीये बनाने के काम में तेजी से जुट गए हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस बार उनकी दीवाली भी रोशन रहेगी। मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं।
चाइनीज झालरों पर भारी पड़ेंगे स्वदेशी दीये
हालांकि पिछले कुछ समय में आधुनिकता के इस दौर में दीयों का स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया है। ऐसे में कुम्हारों के सामने आजीविका का संकट गहरा गया है। चाइनीज झालरों ने इन कुम्हारों को और चोट पहुंचाई। इस कारण वर्ष भर इस त्योहार की प्रतीक्षा करने वाले कुम्हारों की दीवाली अब पहले की तरह रोशन नहीं रही। मगर पिछले कुछ वर्षों से स्वदेशी निर्मित उत्पादों के प्रयोग को लेकर कई स्वयंसेवी संगठन खड़े हुए हैं।
रक्षा बंधन पर्व पर चायनीज राखियों के विरोध का खासा असर दिखाई दिया था। इसके परिणाम स्वरूप स्वदेशी निर्मित उत्पादों की बिक्री में खासी बढ़ोतरी हुई थी। कुम्हार दिवाली में भी ऐसे ही स्वदेशी दीयों को ग्राहक मिलने की उम्मीद कर रहे हैं। इसी उम्मीद में कुम्हारों के चाक फिर से चल पड़े हैं। उन्हें उम्मीद है कि एक बार फिर से उनके अच्छे दिन लौटकर आएंगे। इसी उम्मीद में दीये तैयार करने का काम जोरों पर चल रहा है। बड़ा बाजार पर दीये बेचने बैठेे कुम्हार शंकर ने बताया कि दीपावली दीयों का त्योहार है, इसी उम्मीद के साथ उनकी चाक का पहिया घूमने लगा है। जस्सूसर गेट रोड़ पर दीये बेचने बैठे भोला ने कहा - उम्मीद है कि इस बार मिट्टी के दीए ज्यादा बिकेंगे। इससे उनकी दीपावली भी पहले से बेहतर रहेगी।
डिजाइनर दीये बढ़ा रहे रौनक
मिट्टी के दीयों से अपने घर-आंगन को सजाने की तैयारी लोगों ने शुरू कर दी है। बदलते ट्रेंड के साथ लोग डिजाइनर दीये भी खूब पसंद करने लगे हैं। इसी कारण कुम्हार दीये की अलग-अलग वैरायटी बनाने लगे हैं। इनकी डिमांड हर बार रहती है। मिट्टी के झालर, मिट्टी के लालटेन, लटकते दीये, पेड़ के आकार के दीये आदि कई तरह के दीये बाजर में आने को तैयार हैं।
लागत निकलना, दीयों की बिक्री पर निर्भर
कुम्हार संतोष ने बताया कि शुरुआत में दीयों की कीमत कम होती है। मगर जैसे-जैसे त्योहार नजदीक आता है और डिमांड बढ़ती जाती है, दीयों के रेट भी बढ़ते जाते हैं। दीपावली तक 100 रुपये सैकड़ा तक दीए बिक जाते हैं। डिजायनर दीए थोड़े महंगे होते हैं। हालांकि मिट्टी लाने व दीये बनाने से लेकर पकाने में जो खर्च होता है, उसके हिसाब से लाभ नहीं हो पाता। दीये पकाने के लिए लकड़ियां भी अब जल्दी नहीं मिलती। जाे ईधन लगता है, वह काफी महंगा हो चुका है। ऐसे में लागत निकालकर लाभ कमाना दीयों की बिक्री पर निर्भर करता है।
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